अनादिशुद्धब्रह्मणि अनादिकल्पितप्रकृतिः दृश्यते। प्रकृतेः ब्रह्मणा सह अनादिकल्पितः तादात्म्यसंबन्धः। स च संबन्धः कल्पितभेदसहितः वास्तविकाभेदरूपः।
ब्रह्मणि अज्ञानतत्कार्यरूपवस्तूनां कथनं आरोपः, अध्यारोपो वा।
अनादि नाम उत्पत्तिरहितं वस्तु, स्वरूपेण अनादित्वं यस्य। एवं षट् भवन्ति – शुद्धं ब्रह्म, प्रकृतिः, तयोः संबन्धः, ईश्वरः, जीवः तेषां भेदश्च। प्रवाहरूपप्रपञ्चश्च अनादिः।
यत् पारमार्थिकदृष्ट्या नास्ति, यच्च स्वप्नपदार्थवत् भ्रान्त्या भाति, तत् कल्पितम्।
Why does āropa of prapañca on brahman take place
It is a matter of experience that the anādi (beginingless) prakr̥ti is superimposed upon anādi śuddha brahman. This relationship is anādi, and has tādātmya sambandha. i.e. the superimposition is kalpita, and their true nature has no real bheda.
शुद्ध ब्रह्मविषै प्रपंचका *३५ आरोप कैसे हुवा है
उत्तर – अनादिशुद्धब्रह्म के विषै *३६ अनादिकल्पित *३७ प्रकृति है। तिस प्रकृतिका ब्रह्मके साथि अनादिकल्पित तादात्म्यसंबंध है कहिये कल्पितभेद सहित वास्तव अभेदरूप संबंध है।
*३५. ब्रह्मरूप वस्तुविषै अज्ञानतत्कार्यरूप
अवस्तुका कथन आरोप है। याही कूं अध्यारोप बी
कहै हैं।
*३६. उत्पत्तिरहित वस्तु। स्वरूपसै अनादि
है। ऐसे शुद्धब्रह्म। प्रकृति। तिनका संबंध। ईश्वर।
जीव औ तिनका भेद। ये षट् हैं। अरु प्रवाह रूपसे प्रपंच
बी अनादि है।
*३७. जो होवै नहीं औ स्वप्नपदार्थकी न्यांई
भ्रांतिसैं भासे सो कल्पित है॥
तिप्पणी
- āropa / adhyāropa is seeing ajñāna and it’s effects in brahman.
- an anādi has no beginning but it’s very nature