अद्वैतबोधस्य या कापि रीतिः प्रक्रिया इत्युच्यते।
टि॰ – प्रपञ्चस्य विचारः प्रथमे द्वितीये षष्ठे द्वादशे त्रयोदशे च विषयः। अहं प्रपञ्चसहितः कः इति विचारः तृतीये चतुर्थे पञ्चमे। परमात्मा कः इति विचारः दशमे। ब्रह्मस्वरूपात्मस्वरूपविचारः सप्तमे अष्टमे नवमे एकादशे च। प्रपञ्चस्वरूपब्रह्मस्वरूपविचारः पञ्चदशे॥ सर्वस्मिन्नपि तत्त्वंपदार्थशोधनं तयोरैक्यनिश्चयश्च प्रयोजनम्॥
What are the prakriyās
Any means to understand advaita is a prakriyā. Each of the 16 kalās in this vicāra candrodaya is a prakriyā.
तिन प्रक्रियाके नाम कौन है
उत्तर – (१) उपोद्घात॥
(२) प्रपंचका आरोप और अपवाद॥
(३) देह तीनका मैं द्रष्टा हूँ॥
(४) मैं पंचकोशातीत हूं॥
(५) तीन अवस्थाका मैं साक्षी हूं॥
(६) प्रपंचका मिथ्यापना॥
(७) आत्मा के विशेषण॥
(८) सच्चिदानंदविशेषवर्णन॥
(९) अवाच्यसिद्धांतवर्णन॥
(१०) सामान्यचैतन्य और विशेषचैतन्य॥
(११) “त्वं” पद औ “तत्” पदका
वाच्यअर्थ औ लक्ष्यअर्थ अरु दोंनूके
लक्ष्यअर्थकी एकता॥
(१२) ज्ञानीके कर्म की निवृति॥
(१३) सप्तज्ञानभूमिका॥
(१४) जीवन्मुक्ति औ विदेहमुक्ति॥
(१५) वेदांतप्रमेय॥
(१६) श्रीश्रुतिषड्लिंगसंग्रहः॥
ये तिन *३२ प्रक्रिया के नाम हैं॥
इति श्रीविचार चंद्रोदये उपोद्घातवर्णन नामिका प्रथम कला समाप्ता॥१॥
*३२
१ प्रपंचका विचार प्रथम द्वितीय षष्ठ
द्वादश औ त्रयोदशवीं प्रक्रियाविषै किया है। ओ
२ “प्रपंचसहित मैं कौन हूं?” याका विचार
तृतीय चतुर्थ औ पञ्चम प्रक्रियाविषै किया है। औ
३ परमात्मा कौन है। याचा विचार दशम प्रक्रियाविषै किया है। औ
४ ब्रह्म-आत्मा दोनूंके स्वरूपका विचार सप्तम
अष्टम नवम एकादश औ चतुर्दशवीं प्रक्रियाविषै
किया है। औ
५ प्रपंच औ ब्रह्मआत्मा के स्वरूपका विचार पंचदशवीं प्रक्रियाविषै किया है।
सर्व प्रक्रियाका “तत्” “त्वं” पदार्थका शोधन औ तिनकी एकताका निश्चय प्रयोजन है।